बेकाबू हाथें बात करती है
वहनी की धार से|
क्षत विक्षत पड़ा है मानव
धोखे की प्रहार से|
वहनी की धार से|
क्षत विक्षत पड़ा है मानव
धोखे की प्रहार से|
बात मे आकर बात न जाने,
कौन किस जात का जात न जाने,
रहा न जाता अपनो के पीड़ा की
कहार से|
क्षत विक्षत पडा मानव
धोखे की प्रहार से|
कौन किस जात का जात न जाने,
रहा न जाता अपनो के पीड़ा की
कहार से|
क्षत विक्षत पडा मानव
धोखे की प्रहार से|
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